मैं मधु तिवारी पुत्री स्व0 श्री राम सुन्दर तिवारी एंव माता श्रीमती प्रेमा देवी बचपन में 5-6 वर्ष की उम्र में मुम्बई में खो गयी थी । कुछ दिन वहां मैं शेल्टर होम में रही । मुझे अपने घर का पता ज्ञात नही था । वहां मैने अपने घर का पता उत्तर प्रदेश बताया तो मुझे लखनऊ की संस्था में भेज दिया गया ।
मैं 5-6 वर्ष की उम्र में ही राजकीय उत्तर रक्षा गृह, मोतीनगर, लखनऊ जो वर्तमान में राजकीय बाल गृह, बालिका, मोतीनगर, लखनऊ के नाम से जाना जाता है उसमें ही रही तथा वहीं से अपनी पढाई प्रारम्भ की । कक्षा-1 से इण्टर तक की पढाई मैने संस्था में रह कर की साथ ही सिलाई प्रशिक्षण का डिप्लोमा भी यहीं संस्था में रहकर प्राप्त किया।
अगस्त, 1994 में मुझे विभाग द्वारा क्राफट प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त कर पुनर्वासित किया गया । क्राफट प्रशिक्षक के रूप में मेरी प्रथम तैनाती राजकीय निराश्रित महिला कर्मशाला, जगदीशपुर सुल्तानपुर में की गयी थी । वर्तमान समय में मैं क्राफट प्रशिक्षिका के रूप में जनपद बाराबंकी में तैनात हूॅं । अब मेरा विवाह श्री प्रमोद कुमार, निवासी ग्राम शेदपुर, पठानपुरवा, पोस्टर शेरपुर थाना-मवई तहसील, रूदौली, जिला फैजाबाद के साथ हुआ है । वे कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्य करते हैं मैं अपने जीवन से बहुत ही सन्तुष्ट हूॅं । मैं विभाग के सहयोग के कारण आज अपने जीवन निर्वाह खुशी एंव प्रसन्नतापूर्वक कर रही हूॅं ।
नवजात अवस्था में ही मुझे कानपुर हिन्दू अनाथालय में छोड दिया गया था जहां पर मेरा बचपन बीता । इसी अनाथालय से रहकर मैने अपने कक्षा-प्ग् तक की पढाई की।
राजकीय संरक्षण गृह, प्राग नारायण रोड, लखनऊ वर्तमान में राजकीय महिला शरणालय, प्राग नारायण रोड, लखनऊ से संवासिनियों का विवाह कराया जाता था । जिसमें सम्म्लिित होने के लिये मुझे भी कानपुर के अनाथालय से लखनऊ की संस्था में स्थानान्तरित कर दिया गया । शादी के इन्टरव्यू में मैं शामिल हुई और विवाह हेतु चयनित भी हुई, किन्तु मेरे शुभचिन्तकों द्वारा मुझे समझाया गया कि पहले तुम पढाई करके अपने पैरो पर खडी हो जाओ फिर विवाह के बारे में सोचना। उस दिन से मैने अपने मन में ठान लिया कि मुझे आत्मनिर्भर बनना है । इसके लिये प्रथमतः भले ही मैं कोई क्षेत्र निर्धारण नही कर पा रही थी लेकिन मन में एक चाहत थी कि नौकरी करनी है और अपने पैरों पर खडा होना है इसके लिये सबसे पहले मैने अपनी हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की ।
हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैने आई0टी0आई0 से सिलाई का डिप्लोमा किया इसके बाद महिला पालीटेक्निक , लखनऊ से कढाई का डिप्लोमा किया तत्पश्चात नर्सिग ट्रेंिनग सेन्टर, अलीगंज, लखनऊ से नर्सिग का डिपलोमा किया । इसके बाद मैने डेढ वर्ष का प्रशिक्षण किया । इसके बाद मुझे जून, 1983 में विभाग में ही नर्स के पद पर नियुक्ति मिल गयी और तब से आज तक मैं नर्स के पद पर कार्य करते हुए आत्मसंतोष का अनुभव करती हूॅं । मुझे सेवा करने में बहुत सुख मिलता है । बीमार संवासिनियों की सेवा करने के लिये मैं हमेशा तेैयार रहती हॅं ू। आज मैं स्वयं उस मुकाम पर हूॅं कि मै किसी की मदद की मोहताज नही बल्कि किसी की भी मदद करने में सक्षम हूॅं जिसके लिये मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूॅं ।
मेैं गुलनाज पुत्री स्व0 मो0 शब्बीर, निवासी पक्की सराय इटावा आलिम प्रथम- वर्ष मदरसा अरबिया पुरानिया, इटावा बहुत गरीब परिवार की हूॅं । मेरे पापा का इन्तकाल हो चुका है। मैं बहुत आगे जाना चाहती हूॅं । मै मदरसे में पढती हूॅं । ’’ मुझे हमारी बेटी उसका कल ’’ योजना के तहत रू0 30000/- का अनुदान मिला है । मैने ख्वाब में भी नही सोचा था कि मेरे सपने सच होंगे और मैं आगे पढाई जारी रख सकूगी । इस अनुदान से मुझे पझाई मे मदद मिली है वरना मेरी पढाई छूट सकती थी । मैं इस पैसे को सिर्फ पढाई-लिखाई पर ही खर्च करूगी । सरकार की यह योजना मेरे लिये वरदान से कम नहीं है
इस योजना के अन्तर्गत गरीब अभिभावकों की पुत्रियों को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा एकमुश्त रू0 30000/- की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है इस अनुदान को पाकर गुलनाज की आगे की पढाई में मदद मिली तथा उसके आगे के जीवन में संचार हुआ ।
मात्र 25 वर्ष की आयु में पति की मृत्यु हो जाने के कारण मैं निराश्रित थी । महिला कल्याण विभाग द्वारा संचालित विधवाओं से विवाह करने पर दम्पत्ति पुरस्कार योजना की जानकारी होने पर राजू पुत्र श्री मोहर सिंह, निवासी अकबरपुर दौलतपुर थाना इकदिल, जनपद इटावा जिनकी उम्र 27 वर्ष है। उक्त योजना के संचालित होने के कारण मुझसे विवाह किया गया तथा मेरा पुनर्विवाह सम्पन्न हो सका ।
दम्पत्ति पुरस्कार योजना का लाभ पाने से जीवन में एक नई रोशनी जागी है तथा मेरा जीवन सुचारू रूप से चलने लगा है । मैं बहुत प्रसन्नचित्त हूॅं ।
मेरा नाम गुल आसमीन पुत्री इदरीस अली, निवासी ग्राम कुरसैना, तहसील जसवन्तनगर, जिला इटावा है । मैने कामिल फस्र्ट ईयर का इम्तिहान अभी दिया है । रिजल्ट अभी आना बाकी है । पूर्व मुख्यमंत्री जी के हाथ से मुझे लैपटाप मिला है । मुझे लैपटाप पाकर बेइन्तहा खुशी हुई है । अखिलेश भैया की यह पहल काफी अच्छी है । हमारे परिवार की स्थिति ऐसी नही थी कि हम लैपटाप खरीद सकते इससे हम लोग को पढाई में बहुत कुछ नया सीखने का मौका मिलेगा । दुनिया जहान की चीजें हम लैपटाप पर मालूम कर सकते हैं । हम टीचर बनना चाहते हैं हमारे मदरसे में कम्प्यूटर लैब पहले से है । अब लैपटाप के जरिये हम नयी तकनीक सीख सकेंगे ।
श्रीमती बीना श्रीवास्तव बाराबंकी के गुलरिया गर्दा, घंटाघर मोहल्ले में रहती हैं। इनके परिवार में पति, एक पुत्र तथा दो पुत्रियाॅ हैं। इन्होंने सेंटर फार आरिएंटल रिसर्च एण्ड डवलपमेंन्ट;ब्व्त्क्द्ध के माध्यम से वर्ष 2007 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार की स्टेप परियोजना के अन्तर्गत महिला कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश के सहयोग से चिकन एवं जरी का 2 वर्ष का निःशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त किया । तत्पश्चात् बीना जी ने अपने पुत्र तथा दोनों बेटियों को यह कार्य सिखाया और आज उनका पूरा परिवार अपने घर पर ही चिकन व जरी से संबंधित कार्य के साथ साड़ी, डेªस मैटेरियल , खिलौने, फाइल फोल्डर व बैग आदि बनाकर और इसे सजाकर बाजार में देती हंै। विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित मेलेे और प्रदर्शनियों में स्टाल लगाती हैं तथा इनके घर पर भी लोग आकर इनसे तैयार सामान खरीदते हैं । फलस्वरूप इनके परिवार के जीवन स्तर में अत्यधिक सुधार आया। आज इनके घर में सभी आधुनिक सुविधाएॅ टी.वी., फ्रीज, गैस का चूल्हा, आधुनिक टायलेट उपलब्ध हैं। इन्होंने और आगे बढ़कर पड़ोस की महिलाओं को अपने साथ जोड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया है और समूह द्वारा भी चिकन व जरी तथा अन्य तैयार सामान मिल कर बनाया जा रहा है। आज बीना जी का समाज में सम्मान होता है, बडे़ आयोजनों में उन्हें आमंत्रित किया जाता है।